नवजात शिशु की देखभाल नवजात परिचर्या-
माताओं की अनिवार्य भूमिका
नवजात शिशु की विशेषतौर
से रोगों के प्रति असुरक्षित होते हैं। यदि परिवार द्वारा
सरल और व्यावहारिक उपाय अपनाए जायें तो रोक जा सकने वाले
रोगों का निवारण और नवजात शिशु की मौत को रोका जा सकता है।
गर्भधारण
के तुरन्त बाद शीघ्र ही शिशु की देखभाल शुरू की जानी चाहिए।
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सुनिश्चित
करें की गर्भधारण की प्रारम्भिक स्थिति में गर्भवती महिलाऍं
नजदीक के स्वास्थ्य केन्द्र में पंजीकरण कराऍं/ गर्भावस्था
के दौरान वे कम से कम तीन बार जॉंच अवश्य करायें।
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सुनिश्चित
करें कि प्रसव स्वास्थ्य केन्द्र में हो यदि हॉं सम्भव
न हो तो सुनिश्चित करें कि प्रशिक्षित दाई/नर्स कराऍं।
संक्रमण रोके:-
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प्रसव
पूर्व अवधि के दौरान गर्भवती महिलाओं को टेटनस टाक्सायड
का इन्जेक्शन दिया जाना चाहिए। यह माता और नवजात शिशु
में टकटनस की रोकथाम करने के लिये आवश्यक है।
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यदि
प्रसव साफ वातावरण में नही करवाया जाता है तो नवजात शिशुओं
को संक्रमण हो सकता है। देखभाल करने वाले व्यक्ति को
अपने हाथ साबुन और पानी से धोने चाहिए, साफ बिस्तर पर
प्रसव करवायें नाल को काटनें के लिये एक नये ब्लेड (जो
प्रयोग किया हुआ न हो) का प्रयोग करें, नाल को बांधने
के लिये साफ धागे का इस्तेमाल करें ओर उस धागे पर कुछ
न लगायें।
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माताओं
को प्रसव स्वास्थ्य केन्द्र पर ही करवाना चाहिए यदि
माता घर पर ही प्रसव कराने का फैंसला करें तो उसे स्वास्थ्य
कार्यकर्ता से प्रसव किट (डीडीके) लेनी चाहिए ओर इस बात
पर जोर दे कि प्रसव के दौरान प्रसव किट का प्रयोग किया
जायेगा। यदि प्रसव प्रशिक्षण किट उपलब्ध न हो तो माता
को अवश्य ही साबुन की टिकिया, नया अप्रयुक्त ब्लेड
ओर थोडे से सफेद धागे की व्यवस्था करनी चाहिए प्रसव
के पश्चात शिशु को सुखाने और लपेटने के लिए सूती कपडें
के साफ धुले हुए टुकडे भी उपलब्ध होने चाहिए।
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प्रसव
के तुरन्त पश्चात शिशु को स्तनपान कराना चाहिए शहद,
गुड, पानी इत्यादि पदार्थ नहीं दिये जाने चाहिए
छः मास की आयु तक शिशु को केवल माता का दूध ही दिया जाना
चाहिए। इस अवधि के दौरान पानी की भी आवश्यकता नहीं होती।
किसी
भी परिस्थिति में दूध पिलाने वाली बोतलों अथवा शमकों का प्रयोग
नहीं किया जायेगा क्योंकि ये संक्रमण के स्त्रोत हैं और
अतिसार उत्पन्न कर सकते हैं जो शिशु को मार सकते हैं।
शिशु को गर्म
वातावरण में रखना:-
नवजात
शिशु को गर्म वातावरण में रखा जाना चाहिए। छोटे बच्चे अपने
तापमान को बनाए नहीं रख सकते हैं। यदि उनको देख रेख के बिना
छोड दिया जायेगा तो उनको तेजी से ठन्ड लग जायेगी और वे हाइपोथर्मिया
से मर सकते है।
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जैसे
ही शिशु का जन्म हो, उसे सूती कपडे से पोंछना चाहिए।
प्रसव के पश्चात सिर की खाल को तेजी से सुखाना विशेषतौर
से महत्वपूर्ण है।
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प्रसव
के तुरन्त पश्चात बच्चें को स्तनपान करवाने से भी
शिशु को गर्म रखने में सहायता मिलती है।
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शिशु
को हवा के झोंके से बचा के रखना चाहिए। शिशु को पंखे और
कुलर के सामने नहीं रखा जाना चाहिए शिशु को रखे जाने वाले
कमरे को काफी गर्म रखा जाना चाहिए जो वयस्कों के लिए
बेआरामी महसूस करने वाला हो सकता है।
शिशुओं का पोषण:-
प्रसव
के पश्चात स्तनपान शीघ्र शुरू किया जाना चाहिए कोलोस्ट्रम
पीला गाढा दूध जो प्रसव के पश्चात पहले कुछ दिनों में स्तनों
में आता है, को हर हालत में शिशु को दिया जाना चाहिए पहले
छः महिनों की आयु के दौरान केवल माता का दूध ही दे कुछ महिनों
की आयु के पश्चात माता के दुध के अतिरिक्त पूरक भोजन देना
शुरू करें।
खतरें के चिन्हों
को पहचाने:-
जब शिशु बीमार
होता है तो अधिकतर माताऍं पहचान सकती हैं। शुरू में ही चिकित्सा
सहायता मांगे क्योंकि नवजात की दशा बहुत जल्दी ही खराब हो
जाती है। यदि शिशु में कोई खतरे के चिन्ह दिखाई दे तो उसे
तत्काल ही स्वास्थ्य केन्द्र में ले जाया जाना चाहिए।
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