राष्ट्रीय
क्षय नियंत्रण कार्यक्रमः-
मानव सभ्यता के
प्रारम्भ से ही क्षय रोग एक गहन सामाजिक आर्थिक चुनौती
बना हुआ है। इस रोग पर नियन्त्रण के लिये भारत सरकार
ने 1962 से राष्ट्रीय क्षय नियन्त्रण कार्यक्रम लागू
किया। इसके अर्न्तगत जिला स्तर पर एक सुपरविजन एवं मोनिटरिंग
इकाई के रूप में जिला क्षय निवारण केन्द्र् की स्था्पना
की गई। हमारे प्रदेश में 1966 से उक्त कार्यक्रम की
क्रियान्विति की गई।
सन् 1992 में भारत सरकार द्वारा कार्यक्रम की समीक्षा
किये जाने पर क्षय रोगी की खोज एवं उपचार पूर्ण करने
की दर अपेक्षा के विपरीत क्रमशः 30-40 प्रतिशत पाई गई।
इस के प्रमुख कारण आर्थिक कमी, जॉंच एवं उपचार सेवाओं
का केन्द्रीकरण, उपचार पर सीधी निगरानी का अभाव, दवाओं
की अनियमित आपूर्ति, प्रशिक्षण एवं अन्यर संसाधनों की
कमी रही है।
संशोधित राष्ट्रीय क्षय
नियंत्रण कार्यक्रमः-
विश्व बैंक पोषित व विश्व स्वास्थ्य संगठन के तकनीकी
मार्ग दर्शन तथा टी.बी. अनुभाग, भारत सरकार के सहयोग
से संशोधित राष्ट्रीय क्षय नियन्त्रण कार्यक्रम के अन्तर्गत
डायरेक्टमली ऑब्जार्वेशन ट्रीटमेंन्टव शॉट कोर्स (डॉट्स
प्रणाली) वर्ष 1995 से जयपुर शहर में पायलेट प्रोजेक्ट
के रूप में प्रारम्भ की गई। इसके अन्तर्गत क्षय रोगी
को चिकित्सा कर्मी की देखरेख में 6 माह तक क्षय निरोधक
औषधियों का प्रतिदिन सेवन कराया जाता हैं। जांच एवं
उपचार सुविधाओं का विकेन्द्रीकरण करते हुये सामान्यतया
5 लाख की आबादी एवं जनजाति व मरूस्थलीय क्षेत्र में
2.50 लाख की आबादी पर एक टी.बी. यूनिट (सुपरविजन एवं
मोनिटरिंग इकाई), सामान्य क्षेत्र में 1 लाख की आबादी
एवं जनजाति व मरूस्थलीय क्षेत्र में 50,000 की आबादी
पर एक माइक्रोस्कोपी केन्द्र (जांच एवं उपचार इकाई),
20-25 हजार की आबादी पर उपचार केन्द्र व 3-5 हजार की
आबादी पर डॉटस केन्द्र (औषधि सेवन इकाई) की स्थापना
किये जाने का प्रावधान रखा गया है।
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